Aaj Ki Rajniti kaisi hai

AAJ KI RAJNITI आज की राजनीति पर कुछ भी कहने के पहले
दो बातें समझ लेनी जरूरी हैं। एक तो यह कि आज
जो दिखाई पड़ता है, वह आज का ही नहीं होता,
हजारों-हजारों वर्ष बीते हुए कल, आज में
सम्मिलित होते हैं। जो आज का है उसमें कल
भी जुड़ा है, बीते सब कल जुड़े हैं। और आज
की स्थिति को समझना हो तो कल की इस
पूरी श्रृंखला को समझे
आज की राजनीति  बिना नहीं समझा जा सकता। मनुष्य की प्रत्येक
आज की घड़ी पूरे अतीत से जुड़ी है—एक बात !
और दूसरी बात राजनीति कोई जीवन
का ऐसा अलग हिस्सा नहीं है, जो धर्म से भिन्न
हो, साहित्य से भिन्न हो, कला से भिन्न हो।
हमने जीवन को खंडों में तोड़ा है सिर्फ सुविधा के
लिए। जीवन इकट्ठा है।
तो राजनीति अकेली राजनीति ही नहीं है, उसमें
जीवन के सब पहलू और सब धाराएँ जुड़ी हैं। और
जो आज का है, वह भी सिर्फ आज का नहीं है, सारे
कल उसमें समाविष्ट हैं। यह प्राथमिक रूप से खयाल
में हो तो मेरी बातें समझने में सुविधा पड़ेगी।
यह मैं क्यों बीते कलों पर इसलिए जोर
देना चाहता हूं कि भारत की आज की राजनीति में
जो उलझाव है, उसका गहरा संबंध हमारी अतीत
की समस्त राजनीतिक दृष्टि से जुड़ा है।
जैसे, भारत का पूरा अतीत इतिहास और भारत
का पूरा चिंतन राजनीति के प्रति वैराग
सिखाता है। अच्छे आदमी को राजनीति में
नहीं जाना है, यह भारत की शिक्षा रही है। और
जिस देश का यह खयाल हो कि अच्छे
आदमी को राजनीति में नहीं जाना है, अगर
उसकी राजधानियों में सब बुरे आदमी इकट्ठे
हो जायें, तो आश्चर्य नहीं है। जब हम ऐसा मानते
हैं कि अच्छे आदमी का राजनीति में जाना बुरा है,
तो बुरे आदमी का राजनीति में
जाना अच्छा हो जाता है। वह उसका दूसरा पहलू
है।
AAJ KI RAJNITI               हिंदुस्तान की सारी राजनीति धीरे-धीरे बुरे
आदमी के हाथ में चली गयी है; जा रही है,
चली जा रही। आज जिनके बीच संघर्ष नहीं है, वह
अच्छे और बुरे आदमी के बीच संघर्ष है। इसे ठीक से
समझ लेना ज़रूरी है। उस संघर्ष में कोई भी जीते,
उससे हिंदुस्तान का बहुत भला नहीं होनेवाला है।
कौन जीतता है, यह बिलकुल गौण बात है।
दिल्ली में कौन ताकत में आ जाता है, यह बिलकुल
दो कौड़ी की बात है; क्योंकि संघर्ष बुरे
आदमियों के गिरोह के बीच है।
हिंदुस्तान का अच्छा आदमी राजनीति से दूर खड़े
होने की पुरानी आदत से मजबूर है। वह दूर
ही खड़ा हुआ है। लेकिन इसके पीछे हमारे पूरे अतीत
की धारणा है। हमारी मान्यता यह रही है
कि अच्छे आदमी को राजनीति से कोई संबंध
नहीं होना चाहिए। बर्ट्रेड रसल ने
कहीं लिखा है, एक छोटा-सा लेख लिखा है। उस लेख
का शीर्षक—उसका हैडिंग मुझे पसंद पड़ा। हैडिंग
है, ‘दी हार्म, दैट गुड मैन डू’—नुकसान, जो अच्छे
आदमी पहुँचाते हैं।
अच्छे आदमी सबसे बड़ा नुकसान यह पहुँचाते हैं
कि बुरे आदमी के लिए जगह खाली कर देते हैं। इससे
बड़ा नुकसान अच्छा आदमी और कोई
पहुंचा भी नहीं सकता। हिंदुस्तान में सब अच्छे
आदमी भगोड़े रहे हैं। ‘एस्केपिस्ट’ रहे हैं। भागनेवाले
रहे हैं. हिंदुस्तान ने उनको ही आदर दिया है,
जो भाग जायें। हिंदुस्तान उनको आदर नहीं देता,
जो जीवन की सघनता में खड़े हैं, जो संघर्ष करें,
जीवन को बदलने की कोशिश करें।
कोई भी नहीं जानता कि अगर बुद्ध ने राज्य न
छोड़ा होता, तो दुनिया का ज्यादा हित
होता या छोड़ देने से ज्यादा हित हुआ है। आज तय
करना भी मुश्किल है। लेकिन यह परंपरा है
हमारी, कि अच्छा आदमी हट जाये। लेकिन हम
कभी नहीं सोचते, कि अच्छा आदमी हटेगा,
तो जगह खाली तो नहीं रहती, ‘वैक्यूम’
तो रहता नहीं।
अच्छा हटता है, बुरा उसकी जगह भर देता है। बुरे
आदमी भारत की राजनीति में तीव्र संलग्नता से
उत्सुक हैं।
   AAJ KI RAJNITI       कुछ अच्छे आदमी भारत की आजादी के आंदोलन में
उत्सुक हुए थे। वे राजनीति में उत्सुक नहीं थे। वे
आजादी में उत्सुक थे। आजादी आ गयी। कुछ अच्छे
आदमी अलग हो गये, कुछ अच्छे आदमी समाप्त
हो गये, कुछ अच्छे आदमियों को अलग
हो जाना पड़ा, कुछ अच्छे आदमियों ने सोचा,
कि अब बात खत्म हो गयी।
खुद गांधी जैसे भले आदमी ने सोचा कि अब क्रांग्रेस
का काम पूरा हो गया है, अब कांग्रेस
को विदा हो जाना चाहिए। अगर
गांधीजी की बात मान ली गई होती, तो मुल्क
इतने बड़े गड्ढे में पहुंचता, जिसकी हम
कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
बात नहीं मानी गयी, तो भी मु्ल्क गढ्ढे में
पहुँचा है, लेकिन उतने बड़े गड्ढे में नहीं,
जितना मानकर पहुंच जाता। फिर भी गांधीजी के
पीछे अच्छे लोगों की जो जमात थी, विनोबा और
लोगों की, सब दूर हट गये। वह पुरानी भारतीय
धारा फिर उनके मन को पकड़ गयी, कि अच्छे
आदमी को राजनीति में नहीं होना चाहिए।
खुद गांधीजी ने जीवन भर बड़ी हिम्मत से,
बड़ी कुशलता से भारत की आजादी का संघर्ष
किया। उसे सफलता तक पहुंचाया। लेकिन जैसे
ही सत्ता हाथ में आयी, गांधीजी हट गये। वह
भारत का पुराना अच्छा आदमी फिर मजबूत
हो गया। गांधी ने अपने हाथ में सत्ता नहीं ली,
यह भारत के इतिहास का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।
जिसे हम हजारों साल तक, जिसका नुकसान हमें
भुगतना पड़ेगा। गांधी सत्ता आते ही हट गये।
सत्ता दूसरे लोगों के हाथ में गयी। जिनके हाथ में
सत्ता गयी, वे गांधी जैसे लोग नहीं थे। गांधी से
कुछ संभावना हो सकती थी कि भारत
की राजनीति में अच्छा आदमी उत्सुक होता।
गांधी के हट जाने से वह संभावना भी समाप्त
हो गयी।
फिर सत्ता के आते ही एक दौड़ शुरू हुई। बुरे
आदमी की सबसे बड़ी दौड़ क्या है ?
बुरा आदमी चाहता क्या है ? बुरे
आदमी की गहरी से गहरी आकांक्षा अहंकार
की तृप्ति है ‘इगो’ की तृप्ति है।
बुरा आदमी चाहता है, उसका अहंकार तृप्त हो और
क्यों बुरा आदमी चाहता है कि उसका अहंकार
तृप्त हो ?
क्योंकि बुरे आदमी के पीछे एक
‘इनफीरियारिटी काम्प्लेक्स’, एक
हीनता की ग्रंथि काम करती रहती है।
जितना आदमी बुरा होता है,
उतनी ही हीनता की ग्रंथि ज्यादा होती है। और
ध्यान रहे, हीनता की ग्रंथि जिसके भीतर हो,
वह पदों के प्रति बहुत लोलुप हो जाता है।
सत्ता के प्रति, ‘पावर’ के प्रति बहुत लोलुप
हो जाता है। भीतर की हीनता को वह बाहर के
पद से पूरा करना चाहता है।AAJ KI RAJNITI      
                                                               बुरे आदमी को मैं, शराब पीता हो, इसलिए
बुरा नहीं कहता। शराब पीने वाले अच्छे लोग
                                                                            भी हो सकते हैं। शराब न पीने वाले बुरे लोग
           भी हो सकते हैं। बुरा आदमी इसलिए नहीं कहता,
कि उसने किसी को तलाक देकर दूसरी शादी कर
                                                                ली हो। दस शादी करने वाला,
अच्छा आदमी हो सकता है। एक ही शादी पर
जन्मों से टिका रहनेवाला भी बुरा हो सकता है।
                                                                                 मैं बुरा आदमी उसको कहता हूं,
जिसकी मनोग्रंथि हीनता की है, जिसके भीतर
‘इनफीरियारिटी’ का कोई बहुत गहरा भाव है।
  AAJ KI RAJNITI                                                                        ऐसा आदमी खतरनाक है, क्योंकि ऐसा आदमी पद
को पकड़ेगा, जोर से पकड़ेगा, किसी भी कोशिश से
पकड़ेगा, और किसी भी कीमत, किसी भी साधन
का उपयोग करेगा। और किसी को भी हटा देने के
लिए, कोई भी साधन उसे सही मालूम पड़ेंगे।
                                                                     हिंदुस्तान में अच्छा आदमी—अच्छा आदमी वही है,
                                                                              जो न ‘इनफीरियारिटी’ से पीड़ित है और न
‘सुपीरियरिटी’ से पीड़ित है। अच्छे
आदमी की मेरी परिभाषा है, ऐसा आदमी, जो खुद
होने से तृप्त है। आनंदित है। जो किसी के आगे खड़े
होने के लिए पागल नहीं है, और किसी के पीछे खड़े
होने में जिसे कोई अड़चन, कोई तकलीफ नहीं है।
जहां भी खड़ा हो जाए वहीं आनंदित है।
ऐसा अच्छा आदमी राजनीति में जाये
तो राजनीति शोषण न होकर सेवा बन जाती है।
ऐसा अच्छा आदमी राजनीति में न जाये,
तो राजनीति केवल ‘पावर पालिटिक्स’,
सत्ता और शक्ति की अंधी दौड हो जाती है। और
शराब से कोई आदमी इतना बेहोश कभी नहीं हुआ,
जितना आदमी सत्ता से और ‘पावर’ से बेहोश
हो सकता है। और जब बेहोश लोग इकट्ठे हो जायें
सब तरफ से, तो सारे मुल्क की नैया डगमगा जाये
इसमें कुछ हैरानी नहीं है ?
यह ऐसे ही है—जैसे किसी जहाज के सभी मल्लाह
शराब पी लें, और आपस में लड़ने लगें प्रधान होने
को ! और जहाज उपेक्षित हो जाये, डूबे या मरे,
इससे कोई संबंध न रह जाये, वैसी हालत भारत
की है।
                       AAJ KI RAJNITI                                      राजधानी भारत के सारे के सारे मदांध, जिन्हें

                                                          सत्ता के सिवाय कुछ भी दिखायी नहीं पड़
                                                       रहा है, वे सारे अंधे लोग इकट्ठे हो गये हैं।
                                                        और उनकी जो शतरंज चल रही ही, उस पर
                                                    पूरा मुल्क दांव पर लगा हुआ है। पूरे मुल्क से
                                                     उनको कोई प्रयोजन नहीं है, कोई संबंध नहीं है।
                                             भाषण में वे बातें करते हैं, क्योंकि बातें
                                               करनी जरूरी हैं। प्रयोजन बताना पड़ता है। लेकिन
                                                   पीछे कोई प्रयोजन नहीं है। पीछे एक ही प्रयोजन
                                            है भारत के राजनीतिज्ञ के मन में, कि मैं सत्ता में
                                                 कैसे पहुंच जाऊं ? मैं कैसे मालिक हो जाऊं ? मैं कैसे
                                                    नंबर एक हो जाऊं ? यह दौड़ इतनी भारी है,
                                                और यह दौड़ इतनी अंधी है कि इस दौड़ के अंधे और
                                      भारी और खतरनाक होने का बुनियादी कारण यह
                                 है कि
                                            AAJ KI RAJNITI https://www.youtube.com/channel/UCq_SKqLVuPc2hbuCZS6QBZw          भारत की पूरी परंपरा अच्छे
आदमी को राजनीति से दूर करती रही है।
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